--- कविराज भूषण — जाणता राजा युवा प्रतिष्टान

थरथर कापत कुतूबशाही गोलकुंडा,
हहरि हबस भूप भीर भरकती है ll
सिंह सिवराज तेरे घौसा की पुकार सूनी,
केते पातसाहन की छाती धरकती है ll
--- कविराज भूषण
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